भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ जिले में प्रभास पाटन नामक गाँव को ही सोमनाथ कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर भगवान् शिव के पवित्र तथा दुर्लभ बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक आदि तथा स्वंभू ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है. सोमनाथ को अनंत देवालय भी कहा जाता है, क्योंकि यह छः बार मुस्लिम शासकों के द्वारा ध्वस्त किया गया तथा हर बार अपने उसी गौरव के साथ फिर से खड़ा किया गया. वर्तमान मंदिर सन 1947 में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों से निर्मित किया गया है
सोमनाथ मंदिर का वैभवशाली अतीत:
जय सोमनाथ…………..जय सोमनाथ यह जयघोष गुजरात में सौराष्ट्र के वेरावल बंदरगाह और प्रभास पाटन गाँव के परिसर में गूंजता रहता था. साथ ही साथ मंदिर की सीढियों पर आकर टकराने वाली समुद्री लहरों से निकलनेवाली जय शंकर…जय शंकर…..की धीर गंभीर ध्वनि और सुवर्ण घंटानाद से निकलनेवाली ॐ नमः शिवाय…….ॐ नमः शिवाय……..ध्वनि से सारा मंदिर परिसर भक्तिमय बन जाता था.
मंदिर की यह विशाल सुवर्ण घंटा दो सौ मन सोने की थी और मंदिर के छप्पन खम्भे हीरे, माणिक्य और मोती जैसे रत्नों से जड़े हुए थे. मंदिर के गर्भगृह में रत्नदीपों की जगमगाहट रात दिन रहती थी और कन्नौजी इत्र से नंदा दीप हमेशा प्रज्जवलित रहता था. भंडार गृह में अनगिनत धन सुरक्षित था.
भगवान् की पूजा अभिषेक के लिए हरिद्वार, प्रयाग, काशी से पूजन सामग्री प्रतिदिन लाई जाती थी. कश्मीर से फूल आते थे. नित्य की पूजा के लिए एक हज़ार ब्राम्हण गण नियुक्त किये गए थे. मन्दिर के दरबार में चलने वाले नृत्य गायन के लिए लगभग साढ़े तीन सौ नर्तकियां नियुक्त की गई थीं. इस धार्मिक संस्थान को दस हज़ार गावों का उत्पादन इनाम के रूप में मिलता था.
सोमनाथ मन्दिर का इतिहास:
श्री सोमनाथ के इस वैभवसंपन्न पवित्र स्थान पर क्रूर एवं आत्याचारी मुसलामानों ने कई बार आक्रमण किये. कुल मिला कर सोमनाथ मंदिर को छः बार ध्वस्त किया गया तथा लूटा गया. सिलसिलेवार घटनाक्रम निम्न प्रकार से है:
सोमनाथ का प्रथम मंदिर आदिकाल का माना जाता है जिसे चन्द्र देव ने देव काल में निर्मित करवाया था.
आदि मंदिर के क्षीण हो जाने पर द्वितीय मंदिर वल्लभी गुजरात के यादव राजाओं द्वारा सन 649 में आदि मंदिर के ही स्थान पर बनवाया गया.
सन 725 में सिंध के अरब सूबेदार जुनामद ने प्रथम आक्रमण कर अनगिनत खज़ाना लूटा.
सन 815 में गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने तीसरा मंदिर बनवाया जिस पर आक्रमण करके गजनी के महमूद ने शुक्रवार दिनांक 11 मई 1025 को सुबह 9 .46 पर मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को तोड़ डाला. इस दिन उसने 18 करोड़ का खज़ाना लूटा था.
सन 1297 में इस मंदिर को एक बार फिर सुलतान अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने लूटा, खसोटा और ध्वस्त किया.
1375 में गुजरात के सुल्तान मुज़फ्फर शाह ने इस मंदिर को फिर ध्वस्त किया.
1451 में मंदिर एक बार फिर महमूद बेगडा के द्वारा ध्वस्त किया गया.
और अंत में 1701 में इस मंदिर को मुग़ल शासक औरंगजेब के द्वारा ध्वस्त किया गया एवं लूटा गया.
वर्तमान मंदिर सन 1947 में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों से भारत सरकार के सहयोग से निर्मित किया गया, तथा इसके ज्योतिर्लिंग की प्राण प्रतिष्ठा दिनांक 11 मई सन 1951 को सुबह 9 .46 पर की गई. गौरतलब है की यह वही दिनांक तथा समय है जब सन 1025 में महमूद गजनवी ने इस ज्योतिर्लिंग को तोडा था.
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